आपरेशन ब्लू स्टार सिख इतिहास व भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय:-ओंकार सिंह

जून 1984 में सिखों के सर्वोच्च धार्मिक स्थान तख्त श्री अकाल तख्त साहिब व सचखंड श्री हरिमन्दिर साहिब पर आंतकवाद के विरुद्ध कार्यवाही के नाम पर किए गए आपरेशन ब्लू स्टार की 36वीं बरसी पर नम आंखों से शहीदों को नमन करते हुए ओंकार सिंह ने कहाकि आपरेशन ब्लू स्टार सिख इतिहास व भारतीय लोकतंत्र का वो काला अध्याय है जिसमे हज़ारों बेगुनाह सिख राजनीतिक कुंठा के कारण शहीद हुए थे और इस नरसंहार को कोई भी गुरसिख कभी भी नही भुला पाएगा। ऑपरेशन ब्लू स्टार एक सैन्य जीत हो सकती है लेकिन यह एक राजनीतिक हार थी। मैंने अपने पूरे होश-हवास में नफरत, गुंडागर्दी और हैवानियत का यह मजंर अपनी आंखों से देखा की कैसे सिख धर्मानुयायियों को चुन-चुन कर शिकार बनाया गया। यहां तक कि सिखों की नसलकुसी की कोशिश की गई। जब भी 1984 का नाम आता है बेबसी से पूरा वाक्य अपने आप ही दिलों-दिमाग मे घूम जाता है और शरीर सन्न होकर रह जाता है। 3 जून 1984 की रात को श्री अमृतसर साहिब सहित पूरे पंजाब में कर्फ्यू लगाकर श्री दरबार साहिब पर हमला किया गया। 1984 का सिख नरसंहार भारतीय लोकतंत्र की न भुलाई जा सकने वाली काली त्रासदी है। बहुत से मानवाधिकार चिंतकों का तो यह  मानना है कि अगर 1984 घटित न होता तो 1992 और 2002 के अल्पसंख्यक विरोधी कत्लेआम भी नहीं होते. 1984 व 2002 के कत्लेआम हर बार चुनावों में चर्चा का विषय बनते हैं लेकिन बहुत अफसोस कि बात है  कि इन घटनाओं का राजनीतिक लाभ तो पार्टियां उठा लेती है लेकिन सिखों व अन्य अल्पसंख्यकों के जख्मो को भरने या मरहम लगाने की कभी कोशिश नही की जाती अपितु अपनी राजनीतिक इच्छापूर्ति के पश्चात मुद्दे को ज्यों का त्यों छोड़ दिया गया। पूरे विश्व का सिख समुदाय उस दिन को कभी भी नही भुला सकता जब ऑपरेशन ब्लू स्टार दौरान स्वर्ण मंदिर पर टैंक व तोपें चढ़ी थी। ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए सत्ताधारी कांग्रेस तो उत्तरदायी थी ही, इसके लिए विपक्ष व सरकार पर दबाव डालने वालों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी भी बराबर के दायीं थे। ऑपरेशन ब्लू स्टार से कुछ दिन पहले पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी व बीजेपी के वरिष्ठ  नेता श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी इस बात को लेकर धरने पर बैठे थे कि दरबार साहब में फौज भेजी जाए। आडवाणी जी अपनी आत्मकथा ‘माई कंट्री माई लाईफ’ में इस बात को स्वीकारते हैं और फौजी कार्रवाई की सराहना भी करते हैं। अपनी आत्मकथा के एक अध्याय ‘द ट्रॉमा एंड ट्राइअंप ऑफ पंजाब’ में अडवाणी ने लिखा है, “बीजेपी के ​इतिहास में एक प्रमुख जन आंदोलन भिंडरांवाले और उसकी निजी सेना के सामने सरकार के आत्मसमर्पण के खिलाफ था। सिख समुदाय ने हमेशा ही किसी भी दैवीय संकट या मानवीय समस्या के समय इंसानियत की मिसाल कायम करते हुए बिना जाति-धर्म व नस्ल के भेदभाव के मानवमात्र की सेवा की है,कोरोना महामारी के दौरान सिखों की भूमिका इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है और जगजाहिर है। ऐसे में मोके के हुक्मरान का दायित्व है सिखों सहित सभी अल्पसंख्यको के जख्मो पर मरहम लगाकर एकजुटता, भाईचारे व मानवता का संदेश दे ताकि सबके सांझे प्रयासों से भारत को विश्वगुरु बनाने का सपना साकार हो सके।

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