ambala today news: पवित्र भरोसे का सफर के साथ नई सोच बना रहा है आज़ाद”: नीलू वाघेला

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अंबाला कवरेज@ मुंबई। दिग्गज अभिनेत्री नीलू वाघेला टेलीविजन की सबसे ज्यादा सराही गई अदाकाराओं में से एक है। वे राजस्थान की रहने वाली हैं और उनके बेहतरीन काम में ‘दिया और बाती हम’ जैसे कई टॉप रेटेड शोज़ शामिल हैं। भारत और विदेशों में बड़ी संख्या में प्रशंसकों के साथ, यह प्रतिभाशाली अभिनेत्री अपनी आकर्षक स्क्रीन प्रेजेंस और शानदार अभिनय से सब पर छा गई हैं।  आज़ाद चैनल पर सोमवार से शनिवार रात 9:30 बजे प्रसारित हो रहे शो ‘पवित्र भरोसे का सफर’ में अपने नए रोल पर चर्चा करते हुए नीलू वाघेला ने अपने रोल और बहुत-सी बातों पर एक खास चर्चा की,

– अपने नए शो पवित्र भरोसे का सफर‘ के बारे में बताएं?

 जैसा कि नाम से पता चलता है, यह विश्वास की यात्रा है।  यह एक औरत की कहानी है और एक औरत और उसकी ज़िंदगी से जुड़े सभी विषयों को छूती है, खास तौर पर वे महिलाएं, जो पिछड़ी परंपराओं और संस्कृतियों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में रहती हैं। यह शो उन बंदिशों से जुड़ा है, जो दुनिया के बहुत तेजी से आगे बढ़ने के बावजूद अब भी ग्रामीण महिलाओं को घेरे हुए हैं। इन क्षेत्रों की युवतियों को कभी भी अपनी मर्जी से कपड़े पहनने की आजादी नहीं दी जाती, यहां तक कि पढ़ने के लिए घर से बाहर भी नहीं जाने दिया जाता। उन्हें हमेशा बताया जाता है कि उनके अस्तित्व का एकमात्र उद्देश्य शादी करना है। मुझे लगता है कि आज़ाद पर प्रसारित हो रहे इस शो में काफी सोच-विचार किया गया है। यह चैनल अपने शो के जरिए नई सोच को आगे बढ़ा रहा है।  यह शो बताता है कि आपको अपनी संस्कृति को जरूर अपनाना है, लेकिन अपनी आजादी को सीमित नहीं करना है। मैं भी राजस्थान के एक गांव से हूं और ऐसा बहुत कुछ देखा है।  यह शो कहता है कि आपको सम्मान देना चाहिए लेकिन सम्मान की आड़ में ‘पीड़ा’ नहीं उठाना चाहिए और दूसरों को महिलाओं का अनुचित फायदा नहीं उठाने देना चाहिए। शो की सोच यह है कि हमारी लड़कियों को इस तरह शिक्षित किया जाना चाहिए कि वे जीवन में किसी के बहकावे में न आएं। माता-पिता के रूप में हमें अपने बच्चों का दोस्त बनना चाहिए। पवित्रा एक ऐसी लड़की है, जो एक छोटे घर से बड़े घर में जाती है और फिर उसे सभी समझौते करने पड़ते हैं और कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।ambala today news: पवित्र भरोसे का सफर के साथ नई सोच बना रहा है आज़ाद”: नीलू वाघेला

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– अपने रोल के बारे में बताएं?

मैं इस शो में ठकुराइन उमा देवी बनी हूं। उमा परंपराओं से बंधी है और उनके पति उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं।  लेकिन जब वो घर की चारदीवारी से बाहर आती हैं तो सम्मान भी हासिल करना चाहती हैं। उमा देवी के किरदार में तीन शेड्स हैं – वो एक पत्नी, एक मां और एक सास है। मुझे उस बदलाव का हिस्सा बनने पर गर्व है, जो आज़ाद टीवी चैनल लाने की कोशिश कर रहा है। मैं इस चैनल को बधाई देती हूं कि उन्होंने बच्चियों के बारे में सोचा, खास तौर पर उन लड़कियों के बारे में जो ग्रामीण इलाकों में रहती हैं।

– आप इस शो में कैसे आईं?

 चैनल ने मुझसे संपर्क किया था। जब मुझे चैनल की मंशा पता चली, तो मैं ये काम लेना चाहती थी।  मैंने आज तक शो की पूरी कहानी नहीं सुनी। लेकिन शो के लिए जितने सीन मैंने पहले ही शूट कर लिए हैं, उनमें एक महिला के सभी शेड्स हैं: एक पत्नी, एक मां और एक सास। और कैसे उसके किरदार की बारीकियां हर जीवन चरित्र के साथ बदलती हैं जो वो निभा रही हैं। मुझे शो में काम करना पसंद है, स्टार कास्ट और प्रोडक्शन बहुत अच्छा है। आज़ाद चैनल और प्रोडक्शन हाउस पार्थ प्रोडक्शंस एक अच्छा शो बनाने और उसे दर्शकों के सामने लाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

– आपने इस रोल के लिए कैसे तैयारी की?

मैं हमेशा एक नैचुरल एक्टर बनने का प्रयास करती हूं, मैंने कोई अभिनय कौशल नहीं सीखा है।  मुझे लगता है कि मेरे पास भगवान का उपहार है, जो मुझे किरदार को अच्छी तरह से निभाने की ताकत देता है। मैं किसी भूमिका के लिए बिल्कुल तैयारी नहीं करती, मेरे लिए हर दिन एक परीक्षा की तरह है। मैं अब भी उतनी ही असुरक्षित महसूस करती हूं, जितना कि मैं अपने पहले शॉट के लिए थी। मैं सोचती रहती हूं कि क्या मैं किरदार के साथ न्याय कर पाऊंगी। मैं बस कोशिश करती हूं और अपना सर्वश्रेष्ठ देती हूं।

– महामारी के बाद इस शो की शूटिंग का अनुभव कैसा रहा?

महामारी के बाद कई बदलाव हुए जिन्हें हमें अपनाना पड़ा है। हम अपने सह- कलाकारों के साथ बहुत ज्यादा बातचीत नहीं कर सकते, मेकअप में बहुत समय लगता है क्योंकि हर कोई बहुत डरे हुए माहौल में काम कर रहा है। निर्धारित समय सीमा में शूटिंग खत्म करने के लिए निर्देशक और प्रोडक्शन हाउस पर बहुत दबाव है। सहयोगी स्टाफ काफी कम हो गया है और एक दूसरे पर हमारी निर्भरता काफी बढ़ गई है। अब हमें लगता है कि पूरी इकाई हमारा परिवार है और हम एक-दूसरे की यथासंभव मदद करने की कोशिश करते हैं महामारी और परोक्ष रूप से भगवान ने भी हमें कई सबक सिखाए हैं – अपनों से दूर मत जाओ और अपने काम के प्रति ईमानदार रहो। यह एक सीख है। आप अपना जीवन जिस तरह जी रहे हैं, यह महामारी ने हमें सिखाया है।

– आपने अभिनय में कदम कैसे रखा?

मैं 5 साल की थी, जब मैं फिल्म बिदाई की शूटिंग देख रही थी जिसमें जीतेंद्र और लीना चंद्रावरकर थे।  जीतेंद्र की छोटी बहन के रोल के लिए प्रोडक्शन हाउस किसी की तलाश कर रहा था। मुझे इस रोल की पेशकश की गई। फिल्म में दुर्गा खोटे मेरी मां थीं। उस फिल्म के डायरेक्टर ने भविष्यवाणी की थी कि मैं एक दिन एक्ट्रेस बनूंगी। इसलिए मुझे किसी भी भूमिका के लिए ऑडिशन नहीं देना पड़ा। एक्टिंग तो बस हो गई। मैंने कभी किसी भी रोल के लिए ऑडिशन नहीं दिया है, दिया और बाती के लिए भी नहीं…। मेरे पास सीधे फोन आया। मैंने बतौर लीडिंग लेडी 55 से ज्यादा राजस्थानी फिल्में की हैं। मैंने गोविंदा, राकेश रोशन, आसिफ शेख, राज किरण के साथ काम किया है।

– क्या आपको लगता है कि राजस्थानी सिनेमा कुछ अलग है?

नहीं, बॉलीवुड और किसी भी क्षेत्रीय सिनेमा के बीच, केवल स्केल और लोकेशन अलग होते हैं। कहानियां  आम तौर पर एक जैसी होती हैं। मेरी फिल्में चलीं क्योंकि वे अपनी-सी थीं, और दर्शकों एवं वास्तविकता से ज्यादा जुड़ी हुई थीं।  बॉलीवुड और क्षेत्रीय सिनेमा दोनों के दर्शक समान हैं। अगर दर्शक कहानी से नहीं जुड़ पाते हैं, तो फिल्म नहीं चलेगी, चाहे वो बॉलीवुड हो या क्षेत्रीय सिनेमा। इसमें बजट की कोई बात नहीं है।ambala today news: पवित्र भरोसे का सफर के साथ नई सोच बना रहा है आज़ाद”: नीलू वाघेला

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