चण्डीगढ़। किसी भी काम को लीक से हटकर करने की हिम्मत जुटाई जाए तो नि:संदेह उसके परिणाम काफी सुखद और प्रेरक हो सकते हैं। यह बात कृषि पर बखूबी लागू होती है। प्राय: देखने में आया है कि परम्परागत तरीके से खेती करने पर एक तरफ जहां उसकी लागत बढ़ जाती है, वहीं दूसरी तरफ किसान को उतनी पैदावार भी नहीं मिल पाती जितनी मिलनी चाहिए। हरियाणा सरकार ने किसानों को परम्परागत खेती की बजाय आधुनिक तौर-तरीके अपनाने के लिए प्रेरित करने के मकसद से कई तरह की पहल की हैं ताकि किसान इन्हें अपनाकर कम खर्चे में अच्छी पैदावार ले सकें। अगर धान की खेती की बात की जाए तो यह न केवल किसान के लिए बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी काफी महंगी पड़ती है। धान की खेती में होने वाली पानी की खपत को अगर कुछ देर के लिए भूल भी जाएं तो भी पनीरी बनाने से लेकर खेत की तैयारी, पौध लगाने में लगने वाली मजदूरी, इसे बीमारियों से बचाने के लिए समय-समय पर किया जाने वाला कीटनाशकों का छिडक़ाव और फिर इसकी कटाई-झड़ाई में फिर से लगने वाली मजदूरी, फिर इसे मंडी में ले जाने के खर्चे को मिलाकर देखा जाए तो हो सकता है कि यह किसान के लिए भी घाटे का सौदा साबित हो। देखा जाए तो प्रदेश के कई इलाकों में गिरता भूजल स्तर न केवल किसान के लिए बल्कि सरकार के लिए भी चिन्ता का सबब बना हुआ है। इससे निपटने और किसानों को दूसरी फसलें बोने के लिए प्रेरित करने के मकसद से सरकार द्वारा मेरा पानी-मेरी विरासत योजना चलाई जा रही है। इसके अलावा, किसानों को धान की सीधी बिजाई के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है और इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कद्दू करके पौध रोपने और सीधी बिजाई वाले खेतों के तुलनात्मक अध्ययन से पता लगा है कि सीधी बिजाई कहीं अधिक फायदेमंद हो सकती है। ambala today news किसी भी काम को लीक से हटकर करने की हिम्मत जुटाई जाए तो नि:संदेह उसके परिणाम काफी सुखद और प्रेरक हो सकते हैं
ambala today news धान की पराली नही जला सकेंगे किसान, सरकार ने किए प्रबंध
विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग के कृषि वैज्ञानिक डॉ. सतबीर सिंह पुनिया का कहना है भूजल स्तर में निरंतर गिरावट और मजदूरों की कमी के चलते विभाग के कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन से प्रदेश के काफी किसानों ने सीधी बिजाई की थी। रतिया, फतेहाबाद, यमुनानगर, कैथल, असंध क्षेत्र में 5 से 10 प्रतिशत क्षेत्रफल में सीधी बिजाई की गई है। रतिया क्षेत्र के गांव महमदकी व अन्य गांवों में किसानों ने अपने खेतों में 85 से 105 एकड़ तक धान की सीधी बिजाई की थी। इन क्षेत्रों के कई गांवों के किसानों ने अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि सीधी बिजाई वाले धान में बकाने रोग की समस्या बिल्कुल भी नहीं आई, जबकि कद्दू किए गए खेतों में बीज उपचार के बावजूद यह समस्या देखने को मिली है। धान की सीधी बिजाई से न केवल धान की पौध तैयार करने से रोपाई तक की लागत, जोकि करीबन 5000 से 7000 रुपये प्रति एकड़ है, बच जाती है बल्कि पैदावार पर भी कोई असर नहीं पड़ता। इसके अलावा, सीधी बिजाई वाले खेतों में 20 से 30 प्रतिशत तक पानी की भी बचत होती है। जिन किसानों ने पहले सीधी बिजाई की थी और किसी आशंका के चलते दोबारा से खेत तैयार कर कद्दू विधि द्वारा रोपाई की थी, अब वे अगले साल धान की सीधी बिजाई करने के पक्ष में हैं। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह का कहना है कि उन्होंने स्वयं क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान, करनाल में धान की सीधी बिजाई पर कई सालों तक अनुसंधान कार्य किया है तथा धान की सीधी बिजाई करवाई है। इसके फायदों को देखते हुए, किसानों को चाहिए कि वे अपने गांव या आस-पास के क्षेत्र में सीधी बिजाई वाले धान के खेतों का अवलोकन करें और इसके फायदे जानें। ambala today news किसी भी काम को लीक से हटकर करने की हिम्मत जुटाई जाए तो नि:संदेह उसके परिणाम काफी सुखद और प्रेरक हो सकते हैं
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